डॉ.शैल चंद्रा के किताब : गुड़ी ह अब सुन्‍ना होगे

संगी हो ये किताब ल बने सहिन पीडीएफ बनाए नइ गए हे, तभो ले डॉ.शैल चंद्रा जी के रचना मन के दस्‍तावेजीकरण के उद्देश्‍य से येला ये रूप में हम प्रस्‍तुत करत हवन। पाछू प्रकाशक या टाईप सेट वाले मेरे ले सहीं पीडीएफ या टैक्‍स्‍ट फाईल मिल जाही त वोला प्रकाशित करबोन।

1. सहर के गोठ14. नंदागे लडकपन27. भगवान के नांव म40. आज के सरवन कुमार
2. बैसाखू के पीरा15. फायदा28. पढंता बेटा41. इक्कीसवीं सदी के गंधारी
3. अपन-अपन भाग16. आज के सीता29. गुड़ी ह अब सुन्ना होगे42. बोझा
4. संसों17. साध30. पंचयती राज43. कथनी और करनी
5. पागा18. गांव के बेटी31. सहरी हवा44. सोसन
6. भटकन19. टेटका32. सियान के दुख45. बेरा के बात
7. कीमत20. फोकटईया भक्ति33. बदलाव46. पानी के भाव
8. माता के दरसन21. परबुधिया34. बीच के रद्दा47. नवां जमाना के सियान
9. दुनियादारी22. सत्यमेव जयते35. आज के मितान48. परमारथ
10. बंजर23. दाग36. मोर दुलरवा बेटा49. हमर सिक्छा तंत्र
11. दैवारी तिहार24. ओखर खुसी37. बडका नेता50. अभू के पढई
12. डर25. दुख के कारन38. भुईंया के बेटा51. होरी कभू नी बदलय
13. नवा पीढी26. सिक्छा म गुनवत्ता39. मुखौटा

बैसाखू के पीरा

बैसाखू के रोम -रोम हा रोवत रहिस। ओखर बेटा मन हा गांव म आ के जम्मो जमीन ला बेच भांज के सहर चल दिन हे। बैसाखू हा गांव के जम्मो जमीन जायजाद ला तीनों बेटा मन ला बांट दिये रहिस।
ओखर छाती ह गरब के मारे फूलत रहे कि ओखर तीनों झन बेटा मन पढ लिख के बडे-बडे साहब बन गेहें। अब ओला का के चिन्ता हे।
वोहा बाकि जिनगी ल चैन सुख ले बिताही। फेर न तो ओखर बेटा मन ओला सहर जाये बर पुछिन न ही गांव के थोर बहुत भुइंया हा बाचिस जेमा बैसाखू रहतिस।
आज बैसाखू हा बिन भुइंया के, बिन कुरिया के ,बिन लइका मन के अपन ला अनाथ कस पईस। आज अतेक बड दुनिया म ओखर कोनो नइये सोच के वोहा रोवत रहिस।
आज ओला लागिस कि अपन बेटा मन ला अपन मेहनत के कमाये भुइया के बटवारा दे के बड गलती कर डारे हवय।
अब ओखर जिनगी म केवल रोवई ह बचे हवय।

दुनियादारी

एकलव्य ले द्रोणाचार्य ह गुरू दक्खिना के बदला म ओखर सोझ हाथ के अंगठा ल मांगिस।
आज के जमाना के एकलव्य ह साफ-साफ इनकार कर दिस अछ कहिस-‘” गुरूजी आप मन बड चतुर हो। मोला सुद्र जान के धनुर्विद्या
म आगू झन बड सकय कहि के मोर अंगठा ल मांगथ हो? ताकि सवर्ण अर्जुन ह देस के सबले बडे धनुर्धर बन सकै। अइटसने आप मन के इच्छा है? आखिर ले कब तक अइसने सिलसिला ह चलही? नहीं गुरूजी, अब एकलव्य ह दुनियादारी सीख गेहे |’
आज के नया जमाना के एकलव्य ह अपन अंगूठा ल बचा लिस।

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